Saturday, May 31, 2008
गुर्जर : महाराजा से बने ग्वाला , फिर हुई चाहत गद्दी की
गुर्जर शब्द सुनते की आपके जहन में क्या तस्वीर उभरती है ? मेरे मन में जो तस्वीर उभरती है, वो है भेड़-बकरी चराने वाले एक मासूम गडरिये की ...सिर पर सफ़ेद पगड़ी और हाथ में डंडा और आपस बहुत सी भेड़ और बकरिया...या फिर गाय और भेसों का दूध दुहती गूजरी का चेहरा जहन में उतरता है ....गुर्जर आन्दोलन के चलते मेरे मन में एक प्रशन उठा की क्यों न गुर्जर समाज के इतिहास के पन्नों को पलटा जाये और फिर जो मैंने पढ़ा वो शायद एक सपना था । क्या आप जानते है की किसी ज़माने में गुर्जर जाती का भारत पर एक छत्र शासन था !! जो जाती आज खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए सडकों पर उतर आई वो वो कभी इस देश पर राज करती थी....जी हाँ अगर गुर्जर समाज की एक वेबसाइट पर दिए विवरण को सत्य माने तो .....आगे पदिये
श्री कृष्ण की मा यशोदा, प्रेयसी राधा , पन्ना धाय, रानी पद्मनी ...ये सभी गुर्जर समाज की गौरव गाथा बयां करती हैं। इस वेबसाइट के अनुसार गुर्जर जाती का उद्गम स्थान है जोर्जिया ! कहतें है की गुजरात प्रदेश का नाम भी गुर्जर समाज से संबंधित है क्योंकि गुर्जरों ने यहाँ कई सदियों तक शासन किया । गुर्जर स्वयम को रघुकुल वंशी (भगवन श्री राम के वंशज) मानते हैं । लेकिन कुछ लोगो का मत है की गुर्जर श्री कृष्ण के वंशज है। शुरू में गुर्जरों ने पश्चिम राजस्थान में आपना शासन स्थापित किया और उसे पूर्व में असम तक और पश्चिम में लाहौर तक फेलाया ।
इस पूर्व सं ६५० से लेकर इस पश्चात सं १०६० तक गुर्जरों का शासन काल रहा जिसमे दादा प्रथम से लेकर यशपाल तक ने शासन किया ।
लेकिन मुस्लिम शाशाको के आने के बाद गुर्जर शासन का अंत भी आ गया। सं १६९७ में Ala-ud-din खिलजी ने आखरी गुर्जर शासक का अंत कर दीया. इस प्रकार सदियों से चला आ रहा गुर्जन शासन पूरी तरह समाप्त हो गया। इसके बाद तो गुर्जर लोगो पर अत्याचार और दमन का सिलसिला शुरू हुआ उससे घबरा कर कई गुर्जरों ने अपना धरम परिवर्तन कर मुस्लिम धर्म को अपना लिया । गुर्जर समाज की दशा दिन पर दिन खराब होती चली गयी और उन्होने खेती बादी और पशुपालन का व्यवसाय अपना लिया ।एक अनुमान के अनुसार आज देश भर में गुर्जर समाज की जनसंख्या करीब साधे तीन करोड़ है। गुर्जर समाज ने देश को सरदार वल्लभ भाई पटेल, राजेश पायलट और विजय सिंह पथिक जैसे नेता प्रदान किये हैं।
गुर्जर आन्दोलन के कर्णधार श्री किरोदी सिंह बैसला का कहना है की गुर्जर समाज ने अपने जनजातीय रहन सहन को कायम रखा है और यह वर्ग सामजिक और आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ा हुआ है, इसलिए इसे अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाना चाहिऐ। अब देखना ये है की क्या आरक्षण की बैसाखी के जरिये शासन के गलियारों में अपनी हिस्सेदारी बढाने में सफल हो पाएंगे और क्या वे अपने सुनहरे अतीत को फिर से प्राप्त कर पायेंगे ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment